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सिक्स ओफ वांड

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



नेतृत्व, अच्छी खबर, सफलता, सार्वजनिक मान्यता, प्रगति, आत्मविश्वास

यह कार्ड दिखाता है आपके नेतृत्व गुण। लीडरशीप क्वालीटीज घर संसार, समाज, काम की जगह, स्कूल, पोलिटिक्स सभी जगहों पर काम आती है। आपको बहोत जल्द अच्छी खबर मिलनेवाली है। आप सफलता के काफी नजदीक पहुंच गए हैं। सार्वजनिक मान्यता के अनुसार आपको अपने समाज में बहोत मान सम्मान दिया जाता है।आपकी प्रगति धीमी है लेकिन ठोस है। आत्मविश्वास के साथ आपको आगे बढते ही रहना है। राजा भरत के जैसा।

रिवर्स भविष्य कथन



स्थगन, बुरी खबर, धन पर गर्व, निजी उपलब्धि, सफलता की व्यक्तिगत परिभाषा, अनुग्रह से गिरना, अहंकार कुछ कामों में देरी,

स्थगन की समस्या आ सकता है।आपके लिए बुरी खबर अगर आएगी तो आपके परिवार के लोगों से ही। किसी भी परिस्थिती में धन पर गर्व नहीं करना है। निजी उपलब्धि के उपर भी गर्व नहीं करना है। सफलता की व्यक्तिगत परिभाषा आपके लिए कुछ अलग हो सकती है चाहे किसी और को कुछ पसंद आए या नहीं। अनुग्रह से गिरना, अहंकार ईत्यादि जीवन का एक हिस्सा है। केवल उसे आपके उपर हावी होने नहीं देना है। बाकी आप खुद समझदार है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



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एक लड़ाकू वीर सफेद घोड़े पर सवार है|

अपने दाहिने हाथ में वांड (गुढी) पकड़े हुए है|

और अपोलो 'जैतून के पत्ते' का ताज पहना है।

घोड़े को हरे रंग के कपड़े से ढका हुआ है। तीन पगड़ी पहने सहायक, पृष्ठभूमि में वांड (गुढी) पकड़े हुए हैं।



प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक चक्रवर्ति राजा अपने घोड़े पर एक अंगरक्षक के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है, उन्होंने छह वांड (गुढी) पीछे रखी हैं। वे हिमालय की सीमा से आगे बढ़ रहे हैं।

वह चक्रवर्ति निडर सम्राट भरत है। वह जैन परंपरा में अवसर्पिनी काल (जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार समय चक्र) के पहले चक्रवर्ती (सार्वभौमिक सम्राट) थे।

वह जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ के सबसे बड़े पुत्र थे।भारत देश का नाम राजा भरत के ही नाम पर रखा गया था।

(राजा भरत की विस्तृत कथा )

पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि इसी के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। इसका एक नाम 'सर्वदमन' भी था क्योंकि इसने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेते थे।

अपने जीवन काल में उन्होंने यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान के स्थान पर हस्तिनापुर को राजधानी बनाया। भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है।' अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया।

महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा महर्षि भारद्वाज की कृपा से भूमन्यु नामक पुत्र प्राप्त किया।श्रीमद्भागवत के अनुसार तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरुत्स्तोम' यज्ञ किया। मरुद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामक पुत्र दिया।

भारद्वाज के जन्म की विचित्र कथा है। बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी ममता का बलपूर्वक गर्भाधान किया। उसके गर्भ में 'दीर्घतमा' नामक संतान पहले से ही विद्यमान थी। बृहस्पति ने उससे कहा- 'इसका पालन-पोषण (भर) कर। यह मेरा औरस और भाई का क्षेत्रज पुत्र होने के कारण दोनों का (द्वाज) पुत्र है।' किंतु ममता तथा बृहस्पति में से कोई भी उसका पालन-पोषण करने को तैयार नहीं था। अत: वे उस 'भारद्वाज' को वहीं छोड़कर चले गये। मरूद्गणों ने उसे ग्रहण किया तथा राजा भरत को दे दिया।भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण था किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाया। भारद्वाज ने स्वयं शासन नहीं किया। भरत के देहावसान के बाद उसने अपने पुत्र वितथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चला गया। फिर सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए।





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